हरिद्वार (अरूण शर्मा)। श्राद्ध यानि पितरों को श्रद्धा से किया गया दान। वैसे श्राद्ध को मुक्ति का मार्ग भी माना जाता है और पितृ पक्ष(Pitr Paksha) के दौरान किये जाने वाले श्राद्ध का विशेष असर पड़ता है। पितृ पक्ष (Pitr Paksha) का श्राद्ध सभी मृत पूर्वजों के लिए किया जाता है, ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष (Pitr Paksha) में सभी पितृ यमलोक से पृथ्वी लोक पर आ जाते हैं। इसीलिए श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व माना जाता है। इसके लिए हरिद्वार में नारायणी शिला मंदिर वो तीर्थ स्थान माना जाता है जो पितृ तीर्थ और मुक्ति का बड़ा केंद्र हैं। हरिद्वार में तीर्थ करने और गंगा स्नान कर पुण्य कमाने के अलावा दुनिया भर से लोग अपने पितरों की मुक्ति के लिए भी यहां आते हैं।
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बिहार के गया जी को सबसे बड़ा पितृ तीर्थ माना जाता है, गया में पितृ पक्ष के दिन पूर्ण गया जी करने से पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिल कर मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी के साथ हरिद्वार में यही महत्व नारायणी शिला मंदिर का भी है। मान्यता है कि नारायणी शिला मंदिर पर पिण्डदान और श्राद्ध कर्म करने से गया जी का पुण्य फल मिलता है, इसके अलावा हरिद्वार के इस मंदिर में श्राद्ध करने का अधिक महत्व इसलिए भी है। क्योंकि माना जाता है की गया में श्राद्ध करने से तो मात्र से पित्रों को मोक्ष मिलता है मगर हरिद्वार में नारायणी शिला मंदिर में श्राद्ध करने से पित्रों को मोक्ष के साथ ही सुख-सम्पत्ति भी मिलती है। नारायणी शिला मंदिर के बारे में कहा जाता है कि एक बार जब गया सुर नाम का राक्षस देवलोक से भगवान विष्णु यानि नारायण का श्री विग्रह लेकर भागा तो भागते हुए नारायण के विग्रह का धड़ यानि मस्तक वाला हिस्सा श्री बद्रीनाथ धाम के बह्मकपाली नाम के स्थान पर गिरा उनके ह्दय वाले कंठ से नाभि तक का हिस्सा हरिद्वार के नारायणी मंदिर में गिरा और चरण गया में गिरे जहाँ नारायण के चरणों में गिरकर ही गयासुर की मौत हो गई यानि वही उसको मोक्ष प्राप्त हुआ था। स्कंध पुराण के केदार खण्ड के अनुसार हरिद्वार में नारायण का साक्षात ह्दय स्थान होने के कारण इसका महत्व अधिक इसलिए माना जाता है क्योंकि मां लक्ष्मी उनके ह्दय में निवास करती है इसलिए इस स्थान पर श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व माना जाता है।
पितृ पक्ष में पितरों का उनके देहान्त की तिथि के दिन श्राद्ध करना जरूरी माना गया है मान्यता है कि पितरों का श्राद्ध वह भी श्रद्धापूर्वक यदि नही किया जाये तो इससे पित्र नाराज हो जाते है और उनके श्राप से व्यक्ति पितृ दोष से ग्रसित हो जाता है जिस घर में पितृ दोष होता है उस घर की सुख-शांति खत्म हो जाती है और तरह-तरह की समस्याएं आने लगती है यानि व्यक्ति का जीवन कष्टों में घिरने लगता है पितृ दोष के निवारण के लिए देश में नारायणी शिला मंदिर को दूसरे नम्बर पर सबसे खास स्थान माना जाता है इसी लिए पितृ दोष की शांति के लिए पितृ पक्ष सबसे उपयुक्त दिन होते है इन दिनों में पित्रों को प्रसन्न कर पितृ दोष से भी मुक्ति पाई जा सकती है। हरि का द्वार यानी हरिद्वार धर्मनगरी हरिद्वार में यदि लोग गंगा में ङुबकी लगाकर जन्म-जन्मान्तरों के पाप धोने आते है तो हरिद्वार लोग अपने पित्रों की आत्मा की शांति और उन्हें मोक्ष दिलाने की कामना लेकर भी आते है, हरिद्वार में गंगा जहाँ सबके पाप धो देती है वहीँ वह मृतकों की आत्माओं को मोक्ष भी प्रदान करती है। हरिद्वार में आकर श्रद्दा पूर्वक अपने पित्रों का पिँङदान व गंगा जल से तर्पण करने से उन्हें मोक्ष मिल जाता है, लोगो की मान्यता है कि श्राद्ध करने से उनके पित्र प्रसन्न होते हैं और उनके ऊपर सुख-शांति और अपने आशीर्वाद की वर्षा करते है।
धर्मनगरी हरिद्वार में पितृकर्म कराने के लिए नारायणी शिला मंदिर के अलावा कुशावर्त घाट खासतौर पर महत्वपूर्ण माना जाता है पितृ कर्म करने के लिए हरिद्वार आकर लोग पहले गंगा में स्नान कर खुद को पवित्र करते है इसके बाद या तो नारायणी मंदिर या फिर कुशा घाट पर आकर श्राद्ध व गंगा जल से तर्पण कर अपने पितरों के मोक्ष की कामना करते है कुशा घाट का पुराणों में भी उल्लेख मिलता है इस स्थान के बारे में माना जाता है कि यह जगह भगवान शिव के अवतार दत्तात्रेय भगवान की तपस्थली रही है इसी वजह से इस स्थान पर पितरों का अस्थि-विर्सजन, कर्मकाँङ, श्राद्ध, पिँङ दान और तर्पण करने से पित्रों की आत्मा को शांति और मोक्ष दोनों ही प्राप्त हो जाते हैं।